लेखिका : मधु धामा
मूल्य : 199 रुपए
रावण की बहन शूर्पणखा को कुछ कथाओं में एक त्रासदीपूर्ण चरित्र के रूप में दिखाया गया, जो अपने कर्मों के बोझ तले दब गई।
कुछ दक्षिण भारतीय परंपराओं में ये भी मानते हैं कि शूर्पणखा ने अपने कर्मों का प्रायश्चित करने के लिए तपस्या की। तपस्वी के रूप में देह त्याग दी। लेकिन ऐसी भी लोककथा है कि वह अर्व में चली गई और आर्यवंशी राम से प्रतिशोध लेने के लिए बचे हुए राक्षसों को एकत्र किया। जब वह राम से युद्ध न कर सकी तो उन राक्षसों को अपनी संस्कृति बदलने का आह्वान किया और राक्षस हरेक संस्कार, कर्म आर्यों के विपरीत करने लगे।
शूर्पणखा का अंत कैसे हुआ, यह एक पहेली है, ग्रंथों में संकेत मिलता है कि वह गुरु शुक्राचार्य की शरण में चली गई थी और अर्व में जाकर रहने लगी थी। उसकी सौतेली बहन कुंबिनी समुद्र के किनारे मृत अवस्था में पाई गई थी। अनेक रामायणों का अध्ययन करने के बाद हमने शूर्पणखा की यह प्रामाणिक आत्मकथा लिखने का प्रयास किया है, इसमें दर्जनों सुंदर चित्र भी दिए गए हैं।
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